Thursday, November 12, 2015

लेखक के सरोकार

लगे रहो मुन्ना भाई की तर्ज पर यह कहने का वक्त है कि डटे रहो लेखक भाई! साहित्यकारों पर गाहे-बगाहे सुविधाभोगी होकर अपने ही खोल में सिमटे रहने के आारोप लगते रहे हैं, जो कुछ सज्जनों के बारे में सही हो सकते हैं। लेकिन सामाजिक सरोकार रखने वाले अनेक लेखक सजगता के साथ समाज में घटने वाली घटनाओं पर लिखते रहे हैं, अपनी चिंताएं जताते रहे हैं, समाज को हकीकत से अवगत कराते रहे हैं, सचेत करते रहे हैं, मार्गदर्शन करते रहे हैं। इस योगदान के लिए इनका ऋणी महसूस होना लाजिमी है। ये लेखक ही हैं जिन्होंने हमें दुनियादारी को समझने की तहजीब दी है, जिसके लिए कृतज्ञता ज्ञापन तो फर्ज बनता ही है। समाज के हालात जब बद से बदतर होते गए, अभिव्यक्ति पर हमले तीखे होने लगे, विचार, तर्क और शब्दों का उत्तर गोली मार कर दिया जाने लगा तो समाज का विचलित होना स्वाभाविक है, जिसमें लेखक, साहित्यकार और कलाकार भी शामिल हैं। इसीलिए उन्होंने सम्मान वापस कर समाज के घुटन भरे माहौल को आवाज दी है, झकझोरने की कोशिश की है।
सत्ताधारी दल के पैरोकार कह रहे हैं कि अमुक-अमुक घटनाओं के समय इस तरह के कदम क्यों नहीं उठाए गए? प्रख्यात लेखक खुशवंत सिंह ने अपना पद्म अलंकरण लौटा कर सरकार से विरोध जाहिर किया। आपातकाल के दौरान बाबा नागार्जुन ने भोपाल में एक सरकारी आयोजन में ही सरकार विरोधी कविताएं सुनार्इं, लेखकों द्वारा सरकार के प्रतिरोध के अनेक उदाहरण साहित्य में दर्ज हैं और जगजाहिर हैं। वैसे भी यह तो कोई बात नहीं हुई कि पहले किसी गलती का विरोध नहीं हुआ इसलिए अब जो हो रहा है उसे अप्रासंगिक करार दिया जाए।
एक और बेतुकी बात भी उछाली जा रही है कि ये लेखक भाजपा सरकार के खिलाफ राजनीति कर रहे हैं। दरअसल कहा जा रहा है कि आप लेखक हैं तो अपनी सामाजिक जिम्मेवारियों से मुंह फेर लें और उससे उपजी राजनीतिक चेतना का गला घोंट दें, आपको सामाजिक प्राणी की तरह राजनीतिक ढंग से सोचने का हक भी नहीं है क्योंकि अज्ञान के कारण राजनीति करना केवल अपराधियों, अवसरवादियों, झूठ-फरेब की तिजारत करने वाले कारोबारियों, तिकड़मबाजों, बाहुबलियों और धन पशुओं का ही एकाधिकार मान लिया गया है। लेखकों पर राजनीति करने की तोहमत लगाते वक्त यह बात भी सुविधापूर्वक भुला दी गई कि भाजपा के पक्ष में लिखने वाले भी (जिसमें कोई हर्ज नहीं है) राजनीति कर रहे हैं। जिन लेखकों ने वर्तमान हालात से जूझने का साहसिक निर्णय किया है उनका साथ देना इसलिए भी जरूरी है कि- कुछ न कहने से भी छिन जाता है एजाजे सुखन /चुप रहने से भी कातिल की मदद होती है। 

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