मुस्लिम समाज में सभी पर्व मनाने के पूर्व चांद को देखे जाने का रिवाज है। ईदुल फितर, रमजान, ईदुज्जुहा और मुहर्रम जैसे प्रमुख पर्वों पर चांद देखकर पर्व मनाया जाता है।
इसके पीछे हिजरी संवत् कैलेंडर की अवधारणा है जो चंद्र गणना पर आधारित है और इसकी शुरुआत 622 ईस्वी से हुई।
इस दौरान हजरत मुहम्मद साहब ने मक्का से मदीना की ओर रुख किया था जिसे हिज्र कहते हैं। इस वजह से हिजरी कैलेंडर शब्द प्रचलन में आया। सूर्य गणना में एक साल में 365 दिन होते हैं जबकि चंद्र गणना में साल में 354 या 355 दिन होते हैं।
इस तरह सूर्य गणना की तुलना में चंद्र गणना हर साल 10 या 11 दिन पीछे होती है। हजरत मुहम्मद साहब ने हिदायत दी कि इस्लामी तीज-त्योहार चांद देखकर ही मनाए जाएं। इसलिए मुस्लिम बिरादरी समूचे विश्व में हिजरी कैलेंडर के मुताबिक पर्व मनाती है।
6 दिसंबर को हिन्दूवादी संगठन शौर्य दिवस मनाते हैं और मुस्लिम समुदाय शोक दिवस। मोहर्रम जैसा बड़ा पर्व भी है।
इसके पीछे हिजरी संवत् कैलेंडर की अवधारणा है जो चंद्र गणना पर आधारित है और इसकी शुरुआत 622 ईस्वी से हुई।
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इस तरह सूर्य गणना की तुलना में चंद्र गणना हर साल 10 या 11 दिन पीछे होती है। हजरत मुहम्मद साहब ने हिदायत दी कि इस्लामी तीज-त्योहार चांद देखकर ही मनाए जाएं। इसलिए मुस्लिम बिरादरी समूचे विश्व में हिजरी कैलेंडर के मुताबिक पर्व मनाती है।
6 दिसंबर को हिन्दूवादी संगठन शौर्य दिवस मनाते हैं और मुस्लिम समुदाय शोक दिवस। मोहर्रम जैसा बड़ा पर्व भी है।
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