संविधान (छियासीवां संशोधन) अधिनियम, 2002 ने भारत के संविधान में अंत: स्थापित अनुच्छेद 21-क, ऐसे ढंग से जैसाकि राज्य कानून द्वारा निर्धारित करता है, मौलिक अधिकार के रूप में छह से चौदह वर्ष के आयु समूह में सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करता है। नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा (आरटीई) अधिनियम, 2009 में बच्चों का अधिकार, जो अनुच्छेद 21क के तहत परिणामी विधान का प्रतिनिधित्व करता है, का अर्थ है कि औपचारिक स्कूल, जो कतिपय अनिवार्य मानदण्डों और मानकों को पूरा करता है, में संतोषजनक और एकसमान गुणवत्ता वाली पूर्णकालिक प्रांरभिक शिक्षा के लिए प्रत्येक बच्चे का अधिकार है।
भारत 66 प्रतिशतक के एकगरीब साक्षरता दर, के रूप में अपनी रिपोर्ट 2007 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन द्वारा दी गई और जैसा कि संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट, 2009 में शामिल के साथ विश्व साक्षरता रैंकिंग में149, स्थान है।
वास्तव में, शिक्षा जो एक संवैधानिक अधिकार था शुरू में अब एक मौलिक अधिकार का दर्जा प्राप्त है। अधिकार की शिक्षा के लिए विकास इस तरह हुआ है: भारत के संविधान की शुरुआत में, शिक्षा का अधिकार अनुच्छेद 41 के तहत राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत मान्यता दी गई थी मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का आश्वासन राज्य के नीति निर्देशक अनुच्छेद 45, जो इस प्रकार चलाता है,दस साल की अवधि के भीतर होगा मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के लिए इस संविधान के सभी बच्चों के लिए प्रारंभ से जब तक वे चौदह वर्ष की आयु पूर्ण करें." इसके अलावा, शिक्षा प्रदान करने के साथ 46 लेख भी संबंधित जातियों अनुसूची करने के लिए, जनजातियों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों अनुसूची. तथ्य यह है कि शिक्षा का अधिकार 3 लेख में किया गया है साथ ही संविधान के भाग IV के तहत निपटा बताते हैं कि कैसे महत्वपूर्ण यह संविधान के निर्माताओं द्वारा माना गया है। 29 लेख और आलेख शिक्षा के अधिकार के साथ 30 समझौते और अब, हम अनुच्छेद 21A है,जो अपने आप में एक मजबुत बनाता है ,और अपने आप में एक आश्वासन मिलता है अब ,
2002 में, संविधान (अस्सी छठे संशोधन) अधिनियम शिक्षा के अधिकार के माध्यम से एक मौलिक अधिकार
के रूप में पहचाना जाने लगा. लेख 21A इसलिए सम्मिलित होना जिसमें कहा गया है जिसमे
राज्य के रूप में इस तरीके से, विधि द्वारा, छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा.अनुच्छेद 21Aको लाने के लिए और बाद में, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, RTE अधिनियम के लिए एक कच्चा मसौदा विधेयक 2005 में प्रस्ताव किया गया।1अप्रैल 2010 को बच्चों के अधिकार को नि: शुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम, लोकप्रिय शिक्षा का अधिकार अधिनियम के रूप में जाना
RTE अधिनियम 4 अगस्त 2009 को भारत की संसद द्वारा 2 जुलाई 2009 और कैबिनेट मंत्रालय द्वारा 20 जुलाई, 2009 को राज्य सभा के अनुमोदन के बाद पारित किया गया था। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी थी, उसके और इस के राजपत्र में नि: शुल्क बच्चों के अधिकार पर और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम के रूप में अधिसूचित किया गया 3सितम्बर, 2009को . 1 अप्रैल 2010 पर, यह भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर, पुरे राज्यों में लागू किया गया ,
अनुच्छेद 21-क और आरटीई अधिनियम
1 अप्रैल, 2010 को लागू हुआ। आरटीई अधिनियम के शीर्षक में ''नि:शुल्क और अनिवार्य'' शब्द सम्मिलित हैं। 'नि:शुल्क शिक्षा' का तात्पर्य यह है कि किसी बच्चे जिसको उसके माता-पिता द्वारा स्कूल में दाखिल किया गया है, को छोड़कर कोई बच्चा, जो उचित सरकार द्वारा समर्थित नहीं है, किसी किस्म की फीस या प्रभार या व्यय जो प्रारंभिक शिक्षा जारी रखने और पूरा करने से उसको रोके अदा करने के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। 'अनिवार्य शिक्षा' उचित सरकार और स्थानीय प्राधिकारियों पर 6-14 आयु समूह के सभी बच्चों को प्रवेश, उपस्थिति और प्रारंभिक शिक्षा को पूरा करने का प्रावधान करने और सुनिश्चित करने की बाध्यता रखती है। इससे भारत अधिकार आधारित ढांचे के लिए आगे बढ़ा है जो आरटीई अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 21-क में यथा प्रतिष्ठापित बच्चे के इस मौलिक अधिकार को क्रियान्वित करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों पर कानूनी बाध्यता रखता है।
आरटीई अधिनियम निम्नलिखित का प्रावधान लागू करता है
- किसी पड़ौस के स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने तक नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के लिए बच्चों का अधिकार।
- यह स्पष्ट करता है कि 'अनिवार्य शिक्षा' का तात्पर्य छह से चौदह आयु समूह के प्रत्येक बच्चे को नि:शुल्क प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने और अनिवार्य प्रवेश, उपस्थिति और प्रारंभिक शिक्षा को पूरा करने को सुनिश्चित करने के लिए उचित सरकार की बाध्यता से है। 'नि:शुल्क' का तात्पर्य यह है कि कोई भी बच्चा प्रारंभिक शिक्षा को जारी रखने और पूरा करने से रोकने वाली फीस या प्रभारों या व्ययों को अदा करने का उत्तरदायी नहीं होगा।
- यह गैर-प्रवेश दिए गए बच्चे के लिए उचित आयु कक्षा में प्रवेश किए जाने का प्रावधान करता है।
- यह नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने में उचित सकारों, स्थानीय प्राधिकारी और अभिभावकों कर्त्तव्यों और दायित्वों और केन्द्र तथा राज्य सरकारों के बीच वित्तीय और अन्य जिम्मेदारियों को विनिर्दिष्ट करता है।
- यह, अन्यों के साथ-साथ, छात्र-शिक्षक अनुपात (पीटीआर), भवन और अवसंरचना, स्कूल के कार्य दिवस, शिक्षक के कार्य के घंटों से संबंधित मानदण्डों और मानकों को निर्धारित करता है।
- यह राज्य या जिले अथवा ब्लॉक के लिए केवल औसत की बजाए प्रत्येक स्कूल के लिए रखे जाने वाले छात्र और शिक्षक के विनिर्दिष्ट अनुपात को सुनिश्चित करके अध्यापकों की तैनाती के लिए प्रावधान करता है, इस प्रकार यह अध्यापकों की तैनाती में किसी शहरी-ग्रामीण संतुलन को सुनिश्चित करता है। यह दसवर्षीय जनगणना, स्थानीय प्राधिकरण, राज्य विधान सभा और संसद के लिए चुनाव और आपदा राहत को छोड़कर गैर-शैक्षिक कार्य के लिए अध्यापकों की तैनाती का भी निषेध करता है।
- यह उपयुक्त रूप से प्रशिक्षित अध्यापकों की नियुक्ति के लिए प्रावधान करता है अर्थात अपेक्षित प्रवेश और शैक्षिक योग्यताओं के साथ अध्यापक।
- यह (क) शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न; (ख) बच्चों के प्रवेश के लिए अनुवीक्षण प्रक्रियाएं; (ग) प्रति व्यक्ति शुल्क; (घ) अध्यापकों द्वारा निजी ट्यूशन और (ड.) बिना मान्यता के स्कूलों को चलाना निषिद्ध करता है।
- यह संविधान में प्रतिष्ठापित मूल्यों के अनुरूप पाठ्यक्रम के विकास के लिए प्रावधान करता है और जो बच्चे के समग्र विकास, बच्चे के ज्ञान, संभाव्यता और प्रतिभा निखारने तथा बच्चे की मित्रवत प्रणाली एवं बच्चा केन्द्रित ज्ञान की प्रणाली के माध्यम से बच्चे को डर, चोट और चिंता से मुक्त बनाने को सुनिश्चित करेगा।